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 मंदिर में चार बार डकैतियां पड़ीं।

पहले के महंतों को कई बार पीटा गया।
अभी के महंत यति नरसिंहानंद सरस्वती जी को जान का खतरा है। उनको मंदिर में बंदूकधारी रखने पड़े हैं।
मंदिर वाले इलाके की नब्बे पिच्चानवे प्रतिशत जनसंख्या कटे फटे नोटों की है।
मंदिर के बाहर "कटे फटे नोटों का प्रवेश वर्जित है" का बोर्ड भी लगा है।
लेकिन फिर भी उन्हें मंदिर में घुसना है। हिंदुओं की माँ, बहन , बेटियों को छेड़ना है।
पिछले साल विधायक का नाबालिग कटा फटा बेटा वहाँ लड़की छेड़ते पाया गया और जनता द्वारा पीटा गया।
अगर फिर भी उस पंद्रह साल के लड़के की पिटाई देखकर आपको दया आती है तो आपसे बड़ा मंदबुद्धि और मूर्ख कोई और नही है।
मंदिर के बाहर दो नल लगे हैं, एक बिल्कुल करीब और दूसरा करीब सौ मीटर की दूरी पर । इसके अलावा कुछ ही दूरी पर पंचायत का सामुदायिक प्याऊ भी है।
लेकिन उस जवान होते लड़के को तो बस मंदिर में ही जाना था। क्या पता क्या करने गया था मंदिर में?
क्या पता मूर्ति पर थूकने गया हो ?
क्या पता पेशाब करके मंदिर को अपवित्र करने गया हो?
या फिर अपने फिल्मी भाई "पीके" की तरह मंदिर की दानपेटी से पैसे चुराने की जुगत में गया हो?
या चोरों के लिए रेकी करने गया हो?
या फिर महंत जी के लिए रेकी करने गया हो?
कौन जाने क्या करने गया था?
लेकिन वह पानी पीने तो नही गया था, क्योंकि जिसे प्यास लगती है वह सबसे नजदीक का स्रोत ढूंढता है, दूर नही जाता। और नजदीक का स्रोत मंदिर के बाहर लगे नल थे। पानी पीना तो बस एक बहाना था। एक ऐसा बहाना जिससे बहुसंख्य हिन्दू पसीज जाते हैं।
अगर आपको लगता है कि पंद्रह साल का लड़का बच्चा होता है तो माफ करिएगा क्योंकि आप "गजनी" प्रजाति के हैं, "शार्ट टर्म मेमोरी लॉस"।
दो हजार बारह में निर्भया रेप और हत्याकांड में जिस आरोपी ने सबसे ज्यादा दरिंदगी दिखाई थी, जिसने निर्भया के गुप्तांग में लोहे की रॉड घुसेड़ निर्ममता से घुसेड़ दी थी, उसकी उम्र सोलह साल से चार महीने कम थी। तभी वह हरामखोर फाँसी से बच गया था।
मतलब पंद्रह साल नौ महीने में लड़का रेप कर सकता है लेकिन पंद्रह साल में वह बस बच्चा है।
इतनी हरामखोरी और दोगलापन कहाँ से लाते हो यार?
मेरे घर में कोई अगर बिना अनुमति और मना किये जाने के बाद भी घुसेगा तो उसे मैं सजा दूंगा ही। बिल्कुल ठीक पिटाई हुई उसकी। तुम्हारे बाप का मंदिर है क्या जो वहाँ मना किए जाने के बाद भी घुस रहे हो?
आज सारे मीडियावालों और सेक्युलर लिब्राण्डों (मर्द एंड औरत बोथ) की छातियों में उस लड़के के लिए दूध उतरा जा रहा है, लेकिन ये हरामखोर ये क्यों नही बताते कि "अगर पंद्रह साल का कोई प्यासा बच्चा सऊदी अरब की एक धार्मिक जगह पर अगर पानी पीने चला जाता तो कटे फटे नोट उसे मारते नही बल्कि मार डालते।"
ये हरामखोर तो ये भी नही बताते कि अभी कुछ ही दिन पहले कर्नाटक में एक हिन्दू लड़के को काट दिया गया क्योंकि वह एक कटी फटी लड़की से बस बात कर रहा था।
ये सब तो साले हैं ही दोगले, आप लोग तो न बनो ऐसे। पुलिस को कानून के हिसाब से जो करना है वो करेगी। बचाव पक्ष अपना काम करेगा और फिर फैसला आएगा कि वो यादव जी दोषी हैं या नही।
तब तक इन सोशल मीडियाई "बड़ी अम्माओं" को जज बनकर फैसला न सुनाने दें।
ये सिकुलर मीडियाई और लिब्राण्ड कौन होते हैं अदालत के फैसले के पहले ही किसी भी आम नागरिक को दोषी ठहराने वाले?







 
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